Contiguous क्या है ? (What is Contiguous Allocation):
यह बहुत ही पुरानी memory allocation तकनीक है इसमें प्रत्येक process के लिए एक निश्चित् आकार में memory की आवश्यकता होती है।
जब process को execution की आवश्यकता होती है तो वह memory के लिए request करता है जब पर्याप्त मात्रा में memory प्राप्त हो जाता है तो execution आरंभ हो जाता है और यदि पर्याप्त मात्रा में memory प्राप्त नहीं होता तो process के द्वारा self से ही memory allocate कर दिया जाता है उसके पश्चात् process आरंभ किया जाता है।
इसे नीचे दिये चित्र से समझते हैं:
Contiguous allocation in os |
- Base register का मुख्य तत्व physical address की छोटी इकाई होती है।
- Limit register का तत्व logical address की सीमा होती है जिसमें प्रत्येक logical address का limit register से कम होना आवश्यक होता है।
मुख्य memory को operating system और उपयोगकर्ता के application को process करने के लिए बाँटकर रखना होता है। Contiguous allocation को operating system के द्वारा दो रजिस्टर के मदद से बनाया जाता है।
जब मुख्य memory में process चलते रहता है तो जिस स्थान पर process चल रहा है उस memory का आरंभिक पता base register का तत्व होता है और जितना byte process के द्वारा उपयोग किया जाता है उन्हें limit register के नाम से जानते हैं।
यहाँ आपको यह पता होना आवश्यक है कि process सीधे वास्तविक पते को point नहीं करता वह CPU द्वारा निर्धारित logical address को point करता है।
Paging क्या है ? (What is Paging in Operating System) :
Paging, secondary storage से data को प्राप्त करने के लिए memory management तकनीक है जिसका मुख्य उद्देश्य memory में संग्रहित data को तेजी से प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करना होता है। इसमें operating system के द्वारा main memory को एक स्थाई आकार में बाँटा जाता है जिसे pages कहते हैं।
Paging में physical address space को लागू किया जाता है जो असमान प्रक्रिया के लिए होता है। Paging करके हम बाहरी विखंडन की समस्या का हल प्राप्त कर सकते हैं। Memory management की समस्या को हल करने के लिए operating system के द्वारा दो प्रकार के तकनीक उपयोग में लाया जाता है:-
जिसमें पहला variable-sizes (परिवर्तनीय आकार) के टुकड़ो में होता है जो virtual memory के रूप में होता है। इसमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि जो जगह छोड़ी जाती है वह अलग-अलग आकारों में विभक्त होती है जिससे एक बिखराव की स्थिति निर्मित हो जाती है और इसमें कार्य करना या किसी data को प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
इसलिए इसका समाधान दूसरी विधि fixed-size (स्थिर आकार) के टुकड़ों से निकाला जा सकता है। इसमें virtual memory को एक ही आकार page के टुकड़ों में बाँटा जाता है जिसे code, heap, stack के लिए logical segment के रूप में रखा जाता है और इसी को Page कहते हैं।
Physical memory में जो स्थिर आकार के slots का एक क्रम होता है उन्हें frame के नाम से जानते हैं और प्रत्येक frame के तत्व के रूप में एक virtual memory page को रखा जाता है। इसे निम्न चित्र से समझते हैं:
paging in os |
उपरोक्त चित्र में 16 byte address space का प्रत्येक page है जिसकी कुल आकार 16x4= 64 byte है। प्रत्येक virtual page को page 0, page 1, page 2 एवं page 3 कहेंगे।
यदि physical memory के लिए paging किया गया है तो उसे निम्न चित्र से स्पष्ट कर सकते हैं:
paging in os |
Physical paging का मुख्य विशेषता इसका लचीलापन होता है। उपरोक्त चित्र में देखेंगे कि operating system के द्वारा कुछ physical memory का उपयोग किया जाता है।
इस प्रकार paging system का लाभ यह है कि इसमें unused space उपयोग operating system आसानी से कर सकता है क्योंकि सभी free space की एक सूची होती है। इसमें प्रत्येक page के लिए एक address space निर्धारित होता है। एक पूर्ण रूप से तैयार paging system, address space को support करता है।
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